जिसे लोग ताने मारते थे — आज वही मंच से तालियाँ बटोरता है। ये कहानी है उस लड़के की, जिसने तानों को सीढ़ियाँ बना लिया। एक बार पढ़ना शुरू करोगे… तो आख़िरी पंक्ति तक रुक नहीं पाओगे!

जीवन का सफ़र कभी सीधा नहीं होता। राह में कांटे भी होते हैं और पथरीली ज़मीन भी। पर जो बात सबसे ज़्यादा चौंकाती है, वो यह है कि हमें सबसे ज़्यादा ताक़त उन्हीं चीज़ों से मिलती है जो हमारे ख़िलाफ़ होती हैं।

जिन्हें हम रुकावट मानते हैंवे दरअसल हमारी परीक्षा की घड़ियाँ होती हैं। और जब हम इन विरोधों से जूझते हैंतब हमारे भीतर एक नई शक्ति का जन्म होता है। यही शक्ति हमें बनाती है – भीतर से एकदम सचमुच मज़बूत।

आइए एक कहानी 'धूल में छिपा हीरा' के माध्यम से इसे समझने का प्रयास करते हैं -

पूर्वांचल के एक छोटे से कस्बे में रवि नाम का एक लड़का रहता था। उसका सपना था कि वह एक प्रेरणादायक वक्ता और लेखक बने, और लोगों को सकारात्मकता की दिशा में चलने के लिए प्रेरित करे। लेकिन उसके हालात बिल्कुल विपरीत थे। उसका परिवार साधारण था — सीमित आमदनी, सीमित साधन, लेकिन बड़े सपने और मजबूत संस्कारों से भरा हुआ।

रवि को किताबें पढ़ने का बहुत शौक था। वह जब भी समय मिलता, प्रेरक किताबों में डूब जाया करता था। कई बार उसके मोहल्ले के लड़के ताने कसते — “ये ज्ञान बाँटेगा? पहले खुद का पेट तो भर ले!”

लेकिन रवि चुपचाप सब कुछ सुनता रहा। उसे विश्वास था कि वक़्त हर सवाल का जवाब ज़रूर देता है। वह दिन-रात पढ़ता, बोलने की प्रैक्टिस करता और लेखन में खुद को डुबोए रखता।

रवि की बचपन की एक मित्र थी — साक्षी। वह न केवल उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी, बल्कि उसका सबसे मजबूत हौसला भी। जब सब उसका मज़ाक उड़ाते, तब साक्षी ही होती जो कहती — “रवि, याद रखना, हीरे हमेशा धूल में ही मिलते हैं। एक दिन तू जरूर चमकेगा।” उसकी प्रेरक बातें रवि के भीतर आत्मविश्वास की लौ जला देती थीं।

एक बार की बात है — उसके कस्बे में एक मोटिवेशनल कार्यक्रम आयोजित हुआ, लेकिन संयोगवश मुख्य वक्ता समय पर नहीं पहुंच पाए। आयोजकों ने मजबूरन रवि को मंच पर बुला लिया। रवि ने दिल से बोला — न कोई भाषण, न कोई अभिनय — बस अपने संघर्ष की कहानी, और कैसे उसने तानों को पत्थर नहीं, सीढ़ियाँ बनाया।

मंच से उतरते समय तालियों की गूंज इतनी थी कि वही मोहल्ले वाले, जो कभी उसका मज़ाक उड़ाते थे, अब मंच के नीचे खड़े होकर उसकी तारीफ़ कर रहे थे। साक्षी भी उस कार्यक्रम में मौजूद थी। जब उसने लोगों की आंखों में रवि के लिए सम्मान देखा, तो उसकी आंखों में भी आंसू आ गए — लेकिन वो आंसू गर्व के थे।

उसी दिन रवि ने ठान लिया — “जो मेरे ख़िलाफ़ हैं, मैं उन्हें अपना रास्ता नहीं, अपनी प्रेरणा बनाऊँगा।”

आज रवि अपने शहर का जाना-पहचाना नाम है। वह युवाओं को अपने अनुभवों से दिशा दे रहा है, और जो कभी उसकी खिल्ली उड़ाते थे, आज गर्व से उसका नाम लेते हैं।

विरोध: आत्मबल की असली परीक्षा

जब कोई आपके ख़िलाफ़ खड़ा होता है, तो दरअसल वह आपको यह दिखाने का मौका दे रहा होता है कि आप कितने सक्षम हैं। विरोधियों की निगाहें आपको गिरते देखने के लिए लगी होती हैं, लेकिन वहीं आपकी सबसे बड़ी ताक़त होती है जो आपको प्रेरित करती है कि — “अब मुझे कुछ बड़ा करके दिखाना है।”

जैसे कोयले की आग में तपकर ही सोना कुंदन बनता है, वैसे ही विरोध की तपिश हमें आत्मिक रूप से मजबूत बनाती है।

जब लोग कहें “तू नहीं कर पाएगा”, तब दिल से कहो — “अब तो यही करना है”

हर युग में, हर संघर्षशील व्यक्ति के जीवन में यह क्षण आता है जब लोग उस पर हँसते हैं, उसे नकारते हैं। लेकिन वही क्षण उसे इतिहास में अमिट बना देता है:

•  कबीर को समाज ने अछूत कहा, पर उनकी वाणी आज भी संसार को दिशा देती है।

•  गुरु नानक देव जी को पाखंडी कहा गया, पर उन्होंने सत्य की मशाल जलाई।

 कलाम साहब को गरीब कहा गया, लेकिन उन्होंने देश का सपना सजाया।

 स्वामी विवेकानंद को सन्यासी कहकर कमज़ोर समझा गया, लेकिन उन्होंने भारत की आध्यात्मिक ताक़त को पूरे विश्व में स्थापित कर दिया।

•  भीमराव अंबेडकर को तिरस्कृत किया गया, लेकिन उन्होंने भारत का संविधान लिखकर इतिहास रच दिया।

•  सुब्रत भट्टाचार्य को “तू कुछ नहीं कर पाएगा” कहा गया, लेकिन उन्होंने खुद को साबित करके IIT का टॉपर बनकर दिखाया।

•  धीरूभाई अंबानी को "तेल बेचने वाला" कहकर मज़ाक उड़ाया गया, लेकिन उन्होंने भारत का सबसे बड़ा उद्योग साम्राज्य खड़ा कर दिया।

विरोध एक तोहफा है — पैकिंग थोड़ी कड़वी है बस

कभी सोचा है, लोग आपके ख़िलाफ़ क्यों हैं? क्योंकि आप कुछ अलग करते हैं। क्योंकि आप भीड़ से अलग सोचते हैं। क्योंकि आपके विचारों में आग है और आंखों में चमक।

लोग उसी पेड़ को पत्थर मारते हैं, जो पेड़ फलदार होता है। इसलिए जब लोग आपके खिलाफ बोलें या आलोचना करें — तो मुस्कराइए, क्योंकि इसका मतलब है कि आप सही रास्ते पर हैं और कुछ मूल्यवान कार्य कर रहे हैं।

विरोध से कैसे निपटें?

1.    मौन को हथियार बनाइएहर जवाब ज़ुबान से नहीं दिया जाता।

2.    कर्म को उत्तर बनाइएजो आप करते हैं, वही सबसे बड़ा उत्तर होता है।

3.    दिशा मत छोड़िएविरोध भटकाता है, पर आपका लक्ष्य ही आपका असली पथदर्शक है।

4.    दिल बड़ा रखिएक्षमा वही करता है जो दिल से बड़ा होता है।

आपकी सफलता, आपके विरोधियों का उत्तर है

जब आपके आलोचक आपकी तारीफ़ करने लगें, तो समझिए आपने जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा पास कर ली। सफलता वह शोर है जो विरोध की हर आवाज़ को शांत कर देता है।

इसलिए विरोध से घबराइए मत। उसे आत्मा का व्यायाम समझिए। जितना ज़्यादा विरोध, उतनी गहरी जड़ें। और जितनी गहरी जड़ें, उतना ही ऊँचा वृक्ष।

विरोध जीवन का शूल नहीं, वह तो छिपा हुआ फूल है। उसी में से आती है सुगंध — आत्मबल की, आत्मविश्वास की और सफलता की। उसे पहचानिए, स्वीकार कीजिए और मुस्कराकर आगे बढ़ जाइए।

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