अगर इरादे फौलादी हों और आत्मविश्वास दीपक बन जाए, तब एक चायवाली भी देश की सबसे कठिन परीक्षा पास कर सकती है। यह कहानी केवल सफलता की नहीं है, बल्कि उस जुनून की भी है, जो हालातों से नहीं घबराता, बल्कि उन्हें सीढ़ियाँ बना लेता है।

 

"अगर आत्मा में विश्वास हो, तो पर्वत भी झुक सकते हैं। आत्मविश्वास ही वह ऊर्जा है जो असंभव को भी संभव बना देती है।" स्वामी विवेकानंद

आत्मविश्वास एक ऐसी दिव्य शक्ति है जो मनुष्य को न सिर्फ़ अपनी सीमाओं से परे जाने की हिम्मत देती है, बल्कि जीवन के कठिन से कठिन संघर्षों से उबारकर उसे अपने सपनों तक पहुँचाने का रास्ता भी दिखाती है।

यह कोई बाहरी वस्तु नहीं, बल्कि हमारे भीतर से उत्पन्न होने वाला वह दीपक है जो अंधकार में भी प्रकाश देता है।

यह कहना गलत न होगा कि आत्मविश्वास वह दृष्टि है, जिससे एक साधारण व्यक्ति भी असाधारण बन सकता है।”

जब आत्मविश्वास साथ होता है, तो परिस्थितियाँ बाधा नहीं बनतीं — बल्कि सीढ़ियाँ बन जाती हैं। और जिस मनुष्य के पास आत्मविश्वास है, वह अकेले ही पूरी दुनिया का सामना कर सकता है।

यह आत्मविश्वास ही था जिसने अर्जुन को महायोद्धा बनाया, अब्दुल कलाम को मिसाइल मैन और कल्पना चावला को अंतरिक्ष तक पहुँचाया।

“Believe you can, and you are halfway there.” – Theodore Roosevelt

आत्मविश्वास न हो तो ज्ञान, योग्यता और अवसर भी व्यर्थ हो जाते हैं। लेकिन आत्मविश्वास हो तो एक साधारण से साधारण व्यक्ति भी असाधारण बन जाता है।

“आत्मविश्वास” के विषय पर कुछ महापुरुषों के प्रेरक विचार इस प्रकार है –

स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि यदि “तुम खुद पर विश्वास करो कि तुम महान कार्य कर सकते हो, और तुम अवश्य करोगे।”

महात्मा गांधी ने कहा है कि मानव की सबसे बड़ी शक्ति उसका आत्मबल है।”

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का कथन हैं कि स्वप्न वो नहीं जो आप नींद में देखते हैं, स्वप्न वो हैं जो आपको नींद नहीं आने देते। आत्मविश्वास उन्हें साकार करता है।”

इन प्रेरक विचारों से यह स्पष्ट होता है कि आत्मविश्वास केवल सोच नहीं, बल्कि एक जीवनदृष्टि है जो व्यक्तित्व को पूर्णता की ओर ले जाती है।

आइए एक प्रेरक कहानी के माध्यम से इसे समझने का प्रयास करते है कि किस तरह से अपने आत्मविश्वास के बल पर निर्धन लड़की रमा “एक 'चायवाली' से IAS अधिकारी कैसे बनी”

शहर के एक व्यस्त इलाके में एक छोटी सी चाय की दुकान थी, जहाँ 19 वर्ष की रमा दिनभर चाय बनाती और ग्राहकों को सेवा देती। उसका बचपन संघर्षों में बीता था — माता-पिता का साया बचपन में ही उठ गया और छोटी उम्र में ही वह अपने नन्हे भाई मनु की ज़िम्मेदारी उठाने लगी।


लेकिन रमा केवल चाय नहीं बेचती थी, बल्कि वह अपने लिए सुनहरे सपने भी गढ़ती थी। वह अक्सर ग्राहकों से किताबें माँगकर पढ़ा करती, और जब कोई सरकारी अधिकारी दुकान पर आता, तो उनकी वाणी, वेशभूषा और व्यवहार को बहुत ध्यान से देखती। धीरे-धीरे उसमें एक इच्छा जन्मी —

मैं भी एक दिन प्रशासनिक अधिकारी बनूँगी।”

उसके इस सपने की चर्चा मोहल्ले में फैलने लगी। लोगों ने यह हँसी का विषय बना लिया।

ये लड़की क्या करेगी जीवन में?”

ठेले पर बैठने वाली से कोई अधिकारी बना है क्या?”

हँसी मत दिलवाओ यार!”

लेकिन रमा की आँखों में कुछ अलग चमक थी। दिनभर की मेहनत के बाद भी रात को वह थकती नहीं थी — बल्कि चुपचाप मोमबत्ती की रौशनी में किताबें पढ़ती रहती।


अमन नामक एक व्यक्ति जो उसी मोहल्ले में एक छोटी सी किताबों की दुकान चलाता था। खुद भी आर्थिक तंगी से जूझा हुआ था लेकिन भीतर से बहुत संवेदनशील और पढ़ने-लिखने का शौकीन था। जब पहली बार उसने रमा को पुरानी किताबें माँगते देखा था, तो बहुत हैरान हुआ और सोचने लगा कि —

"इतनी छोटी उम्र और इतनी तीव्र जिज्ञासा?"

धीरे-धीरे अमन ने रमा की आंखों में वही चमक देखी जो कभी उसके अपने सपनों में हुआ करती थी — मगर हालात से हार मानकर वह अपने सपनों को दफ़न कर चुका था।

लेकिन रमा उससे एकदम भिन्न थी। उसने गरीबी को अपनी सीमा नहीं, सीढ़ी बना लिया था।

अमन को रमा में एक जिद, आत्मबल और सेवा का भाव दिखाई दिया। वह सिर्फ खुद के लिए अधिकारी नहीं बनना चाहती थी — वह समाज की तस्वीर बदलना चाहती थी। रमा की महत्वाकांक्षा को देखकर अमन के दिल में उसकी मदद करने की गहरी भावना जागृत हुई। अब वह उसे हमेशा प्रेरित करता और कहता कि “रमा, तुम्हारे भीतर केवल अधिकारी बनने का सपना नहीं है, बल्कि तुम्हारे भीतर बदलाव की एक ज्वाला है। तुम सिर्फ खुद के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा बन सकती हो।”

अमन खुद पढ़ा-लिखा था, पर पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण नौकरी नहीं कर पाया। उसने तय किया कि अब वह रमा को ही अपना सपना मानकर उसके रास्ते की हर रुकावट को हटाने में साथ देगा।

वह रात में उसके लिए नोट्स तैयार करता, पिछले वर्षों के प्रश्न-पत्र लाता और कभी-कभी उसके छोटे भाई की भी देखभाल कर देता ताकि रमा निर्बाध रूप से पढ़ाई कर सके।


कई वर्षों के कठोर परिश्रम, आत्मविश्वास और साहस के बाद, रमा ने अंततः UPSC परीक्षा उत्तीर्ण की। वही लोग जो कभी रमा पर हँसते थे, वे गर्व से कहने लगे कि : यही है हमारी रमा वर्मा, IAS”

उसका भाई मनु अब डॉक्टर बनने की पढ़ाई कर रहा है। रमा ने न सिर्फ अपनी किस्मत बदली, बल्कि अपने भाई की तक़दीर को भी नई दिशा दी। उसकी इस उपलब्धि के पीछे अमन का विशेष योगदान रहा, जिसकी मदद से वह आज इस मुकाम तक पहुँच सकी है।

रमा और अमन की कहानी केवल एक सफलता की गाथा नहीं है बल्कि यह उस समाज को आईना दिखाती है जो किसी के सपनों को उसके हालात से तौलता है।

इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि :

  • संघर्ष परिस्थितियों से नहीं, सोच से जीता जाता है।
  • जब कोई आपका साथ दे, तो वह एक व्यक्ति नहीं, एक संबल बन जाता है — जैसे रमा के लिए अमन।
  • सपनों की ऊँचाई, किसी चाय की दुकान से भी शुरू हो सकती है — अगर आत्मबल साथ हो।

इस बात को हमेशा याद रखिए कि अगर आत्मविश्वास हो, तो हर कठिनाई से पार पाना संभव है। आत्मविश्वास, साहस, और जुनून ही आपको आपके सपनों तक पहुँचाने की कुंजी हैं। यही वह ऊर्जा है, जो आपके जीवन को बदल सकती है।

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