
क्या आप भी कभी टूटी हुई उम्मीदों, थके हुए हौसलों और असफलताओं के अंधेरे से गुज़रे हैं? क्या आपको भी कभी लगा कि अब कुछ शेष नहीं बचा...? अगर हाँ — तो यह कहानी सिर्फ एक प्रेरणा नहीं, बल्कि जीवन को दोबारा जीने का एक नया दृष्टिकोण है। पढ़िए, कैसे एक साधारण संकल्प ने असाधारण सफलता की नींव रख दी… |
हर किसी को किसी न किसी मोड़ पर ऐसा अनुभव होता है, जब सब कुछ व्यर्थ लगता है, हाथ खाली और मन हारा हुआ महसूस करता है। खासकर युवाओं के लिए यह समय और भी कठिन होता है। करियर, प्रतियोगिता, पारिवारिक अपेक्षाएं और आत्मविश्वास की कमी, यह सब मिलकर उन्हें भीतर से तोड़ने लगते हैं। ऐसे समय में जो सबसे बड़ी ज़रूरत होती है, वह है – "संकल्प की शक्ति।"
संकल्प केवल एक शब्द नहीं, बल्कि एक ऐसा मानसिक बल है, जो व्यक्ति को बिखरने से बचाता है। जब मन और मस्तिष्क पूरी तरह थक जाए, तब भी यह संकल्प ही होता है जो हमें फिर से उठने की प्रेरणा देता है।
संकल्प को जीवन में उतारने के लिए उसे केवल विचार तक सीमित न रखें, बल्कि उसे एक दिनचर्या बना लें। हर सुबह उठकर स्वयं से कहें –
“मैं सक्षम हूं। मैं अपने लक्ष्य तक जरूर पहुंचूंगा।”
अपने लक्ष्य को एक कागज पर लिखें और उसे अपने कमरे की दीवार पर चिपका दें। हर दिन उसके लिए एक छोटा कदम उठाएं। याद रखिए, छोटे कदम भी बड़ी मंज़िल की ओर ले जाते हैं।
आइए एक प्रेरक कहानी के माध्यम से इसे समझने का प्रयास करते हैं –
राहुल एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार का मेहनती और सपनों से भरा हुआ युवक था। उसके जीवन का एक ही लक्ष्य था – एक प्रतिष्ठित सरकारी अधिकारी बनना और अपने माता-पिता का सपना पूरा करना। पढ़ाई में वह सदैव अव्वल रहता था, लेकिन जब उसने प्रतियोगी परीक्षा की राह पकड़ी, तो उसकी असफलताओं ने जैसे उसकी आत्मा को ही झकझोर कर रख दिया। तीन वर्षों में तीन बार असफलता का सामना करते-करते उसका आत्मविश्वास पूरी तरह चकनाचूर हो गया। पहले प्रयास की असफलता के बाद वह खुद को मजबूत बना रहा, दूसरे प्रयास में भी उसने उम्मीद नहीं छोड़ी, लेकिन तीसरी बार जब वह फिर असफल हुआ, तो उसकी आंखों से आंसू नहीं निकले, पर उसकी आत्मा रो रही थी। वह खुद से कहने लगा कि शायद ये जीवन उसके लिए बना ही नहीं है। धीरे-धीरे उसने दुनिया से दूरी बना ली, खुद को कमरे में बंद कर लिया, ना किसी से बात करता, ना घरवालों से नजर मिलाता। मोबाइल और सोशल मीडिया ही उसकी दुनिया बन गई, जहां वह सिर्फ दूसरों की सफलता को देखता और खुद को और ज्यादा खोया हुआ महसूस करता।
इसी गहरी निराशा के बीच एक दिन उसके जीवन में एक उजाले की किरण आई — संगीता। कॉलेज की पुरानी मित्र, जो आत्मनिर्भर थी, सशक्त थी, और जिसने जीवन के संघर्षों से लड़कर खुद को साबित किया था। उसने राहुल को फोन किया। स्क्रीन पर उसकी मुस्कुराती हुई आंखों में चिंता छिपी थी। राहुल ने टूटी हुई आवाज़ में कहा, “सब खत्म हो गया है संगीता... अब मुझसे नहीं होगा।” संगीता ने उसे गहरी नजरों से देखते हुए कहा, “राहुल, जब नाव तूफान में फंसती है, तो क्या नाविक उसे छोड़ देता है? नहीं! वह पतवार को और कसकर पकड़ता है। तू भी वही कर।” उस दिन के बाद से संगीता ने राहुल की हर सुबह में एक नई किरण जोड़ दी। कभी प्रेरणादायक किताबों की सिफारिश करती, कभी वीडियो भेजती, कभी पुराने हंसते हुए पलों की तस्वीरें भेजती। हर सुबह उसका एक मैसेज आता – “बस एक पन्ना पढ़ ले… शुरुआत कर।” राहुल ने किताबें दोबारा उठाई, शुरुआत में मन नहीं लगा लेकिन संगीता के संदेश उसे भीतर तक छू जाते थे।
धीरे-धीरे पढ़ाई की आदत फिर से बनने लगी। उसने छोटे लक्ष्य बनाना शुरू किया, और हर दिन एक छोटा लक्ष्य पूरा करने से उसमें आत्मविश्वास लौटने लगा। उसके चेहरे की उदासी अब उम्मीद में बदलने लगी। छह महीने तक लगातार प्रयास के बाद जब परीक्षा का परिणाम आया, तो राहुल ने पूरे राज्य में टॉप किया। उस दिन जब उसने मां को गले लगाया, तो मां की आंखें नम थीं — लेकिन इस बार ये आंसू दुख के नहीं, अपार खुशी के थे। पिता ने सिर्फ सिर पर हाथ रखा और कहा, “मुझे हमेशा विश्वास था।” राहुल ने अपने फोन पर सबसे पहला कॉल संगीता को किया। उसने कहा, “मैं सफल हो गया...” और संगीता ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “नहीं राहुल, तू जाग गया है।”
आज राहुल एक प्रतिष्ठित अधिकारी है, लेकिन इससे भी ज्यादा, वह अब उन युवाओं को हर रविवार मार्गदर्शन देता है, जो कभी उसी की तरह निराशा की गर्त में डूबे हुए थे। वह हर सेशन में कहता है – “हर राहुल की ज़िंदगी में एक न एक दिन संगीता जरूर आती है, जो उसे उसकी खामोशियों से बाहर निकालती है। बस जरूरत है उसे सुनने की, उस पर भरोसा करने की, और खुद को फिर से बनाने की।” यह सिर्फ एक कहानी नहीं है, यह उन लाखों युवाओं की सच्चाई है जो हार मानने के कगार पर खड़े होते हैं। उन्हें बस एक आवाज़ चाहिए — जो कहे, “तू थका हुआ है, टूटा नहीं… उठ, फिर से चल।” जिंदगी की सबसे खूबसूरत बात यह है कि हम जहां टूटते हैं, वहीं से दोबारा बन सकते हैं। याद रखिए – "तूफान चाहे जितना भी बड़ा हो, अगर आपके भीतर उठने की लहर मजबूत हो, तो आप हर मंज़िल को पार कर सकते हैं।" |
यह कभी मत सोचिए कि आप अकेले हैं। आप अपने सबसे बड़े मित्र स्वयं हैं। अपने आत्मबल, संकल्प और विश्वास को साथ लेकर चलिए – सफलता आपके कदम चूमेगी।
_____________
अपनी पसंदीदा किताबें खरीदें ऑनलाइन: www.gyanpublication.com
Contact @ Mobile Number - 09827229853 [Sunil Chaurasia]
*** अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और gyanpublication.com या इसके स्वामी की आधिकारिक राय नहीं हैं। यह केवल सूचना व शिक्षा हेतु है, इसे कानूनी या व्यावसायिक सलाह न मानें। पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे जानकारी को स्वतंत्र रूप से सत्यापित करें और आवश्यकता पड़ने पर किसी योग्य विशेषज्ञ की सलाह लें। लेखक, प्रकाशक या वेबसाइट किसी भी त्रुटि या परिणाम के लिए उत्तरदायी नहीं होंगे।
Leave a Comment