
आज की दुनिया में जीवन जैसे एक अंतहीन दौड़ बन गया है। हर सुबह अलार्म की तेज़ आवाज़ से आंखें खुलती हैं, तैयार होकर हम उसी तयशुदा रूटीन की ओर भागते हैं — ऑफिस, मीटिंग्स, ईमेल्स, टारगेट्स और कभी न खत्म होने वाले डेडलाइन्स। यह सब हम इसलिए करते हैं ताकि महीने के अंत में एक वेतन मिले, बिल भरे जाएं और जिंदगी कुछ दिनों के लिए आगे बढ़ सके। |
धीरे-धीरे हम इस जीवन शैली को ही “सफल जीवन” मान लेते हैं। एक नौकरी, एक पद, एक पहचान और एक निश्चित सामाजिक स्थिति — लेकिन क्या यही जीवन का उद्देश्य है?
क्या हम इस धरती पर केवल EMI चुकाने, प्रमोशन पाने और वीकेंड्स
की प्रतीक्षा करने के लिए आए हैं?
या फिर कहीं हमारे भीतर कोई गहरी पुकार है — जो हमसे कह रही है कि “तुम कुछ और करने के लिए बने हो…”
जब नौकरी जीवन का एकमात्र लक्ष्य बन जाए
नौकरी करना आवश्यक है — इसमें कोई दो राय नहीं। हर व्यक्ति
को अपने और अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए धन की आवश्यकता होती है। लेकिन समस्या
तब शुरू होती है जब हम अपनी पूरी चेतना, अपनी पूरी ऊर्जा और अपना सारा जीवन केवल नौकरी तक सीमित कर देते हैं। तब हमारी
नौकरी हमारे सपनों, हमारे जुनून और हमारे 'स्व' को निगलने लगती है।
ऐसे में हम भले ही हर महीने तनख्वाह ले रहे हों, लेकिन भीतर से खाली हो जाते हैं। आपने कई लोगों को देखा
होगा जो ऊँचे पदों पर हैं, उनके पास गाड़ी, घर, सुविधाएं हैं —
लेकिन उनकी आंखों में एक अजीब सी थकान होती है, एक गूंगी उदासी, जैसे कुछ अनकहा
रह गया हो।
उद्देश्यहीन जीवन सबसे बड़ी थकान है
जब इंसान को यह न समझ आए कि वह जो कर रहा है, उसका मतलब क्या है, तो वह भले ही व्यस्त दिखे — भीतर से बेहद थका हुआ होता है। वह रोज़ काम करता
है,
लेकिन उनकी आत्मा संतुष्ट नहीं होती। धीरे-धीरे वह खुद से
सवाल करने लगता है —
“मैं ये सब क्यों कर रहा हूं?”, “क्या इससे किसी को फर्क पड़ता है?”, “क्या यही मेरा अंतिम लक्ष्य है?”
यह वही क्षण होता है, जब जीवन एक मोड़ पर खड़ा होता है — जहां व्यक्ति को यह समझने की ज़रूरत होती
है कि नौकरी जीवन का साधन हो सकती
है, लेकिन जीवन का उद्देश्य
नहीं।
क्या नौकरी और उद्देश्य साथ-साथ चल सकते हैं?
बहुत लोग सोचते हैं कि यदि जीवन में कोई उच्च उद्देश्य रखना
है,
तो नौकरी छोड़नी होगी, सब कुछ त्याग देना होगा — लेकिन यह सोच अधूरी है। उद्देश्य और नौकरी को
एक-दूसरे से जोड़ा जा सकता है, बशर्ते हम इस
पर गहराई से सोचें।
कल्पना कीजिए एक शिक्षक की, जो सिलेबस तो पढ़ाता है, लेकिन साथ ही
बच्चों के मन में रोशनी और स्वप्न भी भरता है।
कल्पना कीजिए एक डॉक्टर की, जो दवा देता है — लेकिन साथ ही अपने शब्दों से भी किसी रोगी को जीने का हौसला
देता है।
या एक उद्यमी की, जो लाभ कमाता है — लेकिन साथ ही अपने व्यवसाय से समाज में किसी कमी को दूर
करता है।
ऐसे ही हजारों पेशे हैं — जिन्हें हम अपने उद्देश्य से जोड़
सकते हैं। प्रश्न सिर्फ इतना है कि क्या हम अपना ‘क्यों’ जानते हैं?
उद्देश्य क्या है और यह कैसे पहचाना जाए?
उद्देश्य का अर्थ यह नहीं कि आप कोई बहुत बड़ा आंदोलन शुरू करें या करोड़ों लोगों को बदलें। उद्देश्य का अर्थ है — जो भी करें, उसे पूरी ईमानदारी, पूरी लगन और सेवा-भाव से करें।
आपका उद्देश्य वही होता है जिसमें आप थकते नहीं, बल्कि तरोताज़ा होते हैं। वही कार्य
जिसमें आप समय भूल जाते हैं, आपकी आत्मा
मुस्कराती है और दूसरों को
भी ऊर्जा मिलती है। आपका उद्देश्य कुछ भी हो सकती है जैसे कि :
• जिसने गरीबी देखी है — उसका उद्देश्य हो सकता है कि वह औरों को रोज़गार दे।
• जिसने समाज में भेदभाव झेला है — वह समाज को समता का संदेश दे सकता
है।
• जिसने अकेलापन सहा है — वह दूसरों को साथ देने वाला बन सकता है।
• जिसने असफलताओं का स्वाद चखा है — वह दूसरों को हार से लड़ना सिखा
सकता है।
• जिसे अपमान मिला है — वह दूसरों को सम्मान देना सीख जाता है।
• जिसने अपने सपनों को टूटते देखा है — वह औरों को उनके सपनों के लिए
खड़ा कर सकता है।
• जिसने जीवन की अंधेरी रातें देखी हैं — वह दूसरों के लिए रोशनी बन सकता
है।
• जिसने अपनों को खोया है — वह औरों के लिए सहारा बन सकता है।
• जिसने ठोकरें खाई हैं — वह दूसरों को चलना सिखा सकता है।
• जिसने स्वयं को खोया है — वह दूसरों को खुद को पाने का रास्ता दिखा सकता है।
उद्देश्य केवल महत्वाकांक्षा से नहीं उपजता —
बल्कि यह उस संवेदना से जन्म लेता है, जो दूसरों के जीवन में रोशनी भरने की चाह से प्रेरित होती
है।
जीविकोपार्जन और उद्देश्य के बीच संतुलन कैसे
बने?
यह बहुत ज़रूरी है कि हम जीविकोपार्जन को अनदेखा न करें।
परिवार की ज़िम्मेदारियाँ, आर्थिक स्थिरता, और जीवन की वास्तविक ज़रूरतें हमें किसी न किसी पेशे में बांधती
हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम अपने जीवन के गहरे उद्देश्य को पूरी तरह त्याग
दें।
आप चाहे जिस भी पेशे में हों — प्रयास कीजिए कि आपका काम न
केवल आपकी जेब भरे, बल्कि किसी और
का जीवन भी सुधारें।
छोटे-छोटे कार्य भी यदि उद्देश्य से जुड़े हों, तो वे बहुत बड़ा प्रभाव छोड़ते हैं।
एक कहानी याद आती है:
एक आदमी पत्थर काट रहा था। किसी ने पूछा — क्या
कर रहे हो? तो उसने कहा — "रोज़ी रोटी कमा रहा हूँ।"
दूसरा पत्थर काटने वाला वही कार्य कर रहा था, पर उसके चेहरे पर चमक थी।
किसी ने उससे भी वही सवाल उससे किया — तो उसने मुस्कुराते हुए कहा,"मैं एक मंदिर बना रहा हूँ।"
दोनों की नौकरी एक जैसी थी। पर एक सिर्फ काम कर रहा था, और दूसरा अपने कार्य को एक उद्देश्य से जोड़ रहा था।
यह फर्क केवल सोच का नहीं — यह फर्क जीवन की गहराई और संतोष का होता है।
नौकरी को साधन बनाइए, उद्देश्य को मार्ग
आपको नौकरी करनी है — बिल्कुल कीजिए। वह ज़रूरी है। पर हर दिन कुछ पल खुद से जुड़िए, अपने भीतर के प्रश्नों से बात कीजिए — “क्या मैं इस धरती पर केवल
काम करने के लिए आया हूँ?” या “क्या मुझमें कुछ ऐसा है, जो किसी और के जीवन में रोशनी बन सकता है?”
एक दिन आप समझेंगे कि ज़िंदगी का असली संतोष तब आता है, जब आपकी थकान सिर्फ शरीर की हो — आत्मा की नहीं।
इसलिए…
“सिर्फ नौकरी नहीं — उद्देश्यपूर्ण जीवन चुनिए।” क्योंकि पद और प्रतिष्ठा समय के साथ मिट सकते हैं, लेकिन आपके द्वारा
दिए गए योगदान और प्रेरणा की छाप हमेशा जीवित रहती है। यहीं से शुरू होता है असली आत्म-सम्मान और सच्ची सफलता की राह।
खुश रहिए, स्वस्थ रहिए और अपने जीवन के मूल उद्देश्य
को पूरा करने का प्रयास करते रहिए।
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